महीना अक्टूबर का चल रहा है , इस महीने ने देश को को बहुत से नेता दिए तो वही कितने की इह लीला भी समाप्त हुई। भारतीय राजनीती में परिवार वाद एक अहम मुद्दा है , गाहे - बगाहे इस पर चर्चा होती रहती है। जिसका सब से बड़ा उदहारण कांग्रेस में गाँधी परिवार को कहा जाता रहा है , लेकिन कांग्रेस में भी ऐसे नेता हुए जिनका न भूतकाल राजनीती में था न उन्होंने अपने परिवार से किसी को राजनीती में उतारा।
बिहार के खून में राजनीती होती है , जिसके के कारण हमें कहीं बहार जाने के बाद वहाँ का राजनीती इतिहास, स्थानीय राजनीतिक मुद्दे जानने के बारे दिलचश्पी रहती है। इसी क्रम में एक बार मदुरै जाना हुआ। शहर घूमने के क्रम में कामराज यूनिवर्सिटी का बोर्ड दिखा जिसके बाद कामराज के बारे में जानने कि उत्सुकता हुई। मैं अपने स्थानीय सहकर्मी को पूछा तो कुछ ज्यादे कुछ नहीं बता पाया। उसके बताने से मेरे को बस इतना पता चला कि तमिलनाडु का मुख्यमंत्री था। जिससे मेरी उत्कुंठा शांत हुई भी और नहीं भी , एक मन कह रहा था ऐसे ही नाम दे दिया जैसे इस देश कि परम्परा रही है नेताओ के नाम पर प्रतिष्ठान के नाम रखने कि , लेकिन एक मन कह रहा था नहीं कुछ तो विशेष होगा और मै अपनी जिज्ञासा कि पूर्ति में लग गया। और मै जो पढ़ पाया और सुन पाया कामराज के बारे उस के बाद उस आदमी को नमन करने का मन करने लगा।
कामाक्षी कुमारस्वामी नादेर आगे चल कर के कामराज के नाम से दिल्ली दरबार में अपनी पकड़ बनाया , जिसे न ठीक से हिंदी आती थी और न इंगिलश जिसके कारन वो किंग (प्रधानमंत्री) कभी नहीं बन पाया सदैव किंगमेकर कि भूमिका में रहा।
15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरुधुनगर में जन्मे कामराज अपने पारिवारिक परिस्थिति के कारन शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए और महज 16 वर्ष कि आयु में ही कांग्रेस ज्वाइन कर लिए । जिसके बाद म्युनिस्पल का अध्यक्ष पद से सूबे का मुख्यमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक का सफर तय किया।
1954 में जब उन्हें तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनाया गया उस समय तमिलनाडु में शिक्षा व्यवस्था बहुत ही खस्ता हाल में थी। प्रदेश की साक्षरता दर सात फीसद हुआ करती थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद कामराज शिक्षा को बढ़ाबा विद्यालय में बच्चे का ड्राप - आउट कम कैसे हो उस के लिए बहुत सारी योजना लेके आये जिन योजनाओ को भारत / केंद्र सरकार को लाते - लाते 20वी शताब्दी हो गयी। कामराज के महत्वपूर्ण योजना में प्रत्येक गाँव में प्राथमिक विधालय , 11वीं तक अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा और मध्यान भोजन प्रमुख थे , कामराज के समय से ही तमिल में शिक्षा दी जाने लगी। जिसका परिणाम हुआ सात फीसदी साक्षारता दर वाले प्रदेश में बहुत काम समय में 37 फीसदी साक्षारता दर हो गया।
तीन बार सूबे का कमान सम्हाल चुके कामराज को 60 के दशक में संगठन कमजोर होती नज़र आयी जिसका जिक्र उन्होंने देश के प्रधानमंत्री और उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष पंडित नेहरू से की। कामराज ने नेहरू को एक प्लान बताया जिसे बाद में कामराज प्लान के नाम से जाना गया। जिसके तहत छः केंद्रीय मंत्री और छः मुख्यमंत्री को अपना पद छोड़ पार्टी / संगठन के मजबूती के लिए काम करना था। यही प्लान के वजह से कहा जाता है की इंदिरा गाँधी का रास्ता खुला।
1964 में नीलम संजीव रेड्डी के इस्तीफा के बाद कामराज को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। कामराज और उनके दक्षिण भारत से आने वाले कोंग्रेसी नेताओ को सिंडिकेट के नाम से भी जाना जाता था।
सिंडिकेट पार्टी चला रहा था और इंदिरा सरकार चला रही थीं. पार्टी और सरकार के बीच मतभेद इस स्तर पर पहुंच गए कि साल 1969 में औपचारिक रूप से पार्टी का विभाजन हो गया। साल 1971 के आम चुनाव में इंदिरा की कांग्रेस को जनादेश मिला और कामराज की राजनीति अवसान की ओर बढ़ गई।
जीवन भर महात्मा गांधी के सिखाए आदर्शवाद की राजनीति करने वाले के कामराज गांधी जयंती के ही दिन यानी दो अक्टूबर 1975 को इस दुनिया को छोड़ कर चले गए.
जनसेवा और साफ-सुथरी राजनीति के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले के कामराज को उनकी मौत के एक साल बाद 1976 में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
भारतीय राजनीति में सत्ता से जुड़े रहने के लिए सिद्धांतों के साथ समझौता करने के तो कई उदाहरण मिल जाएंगे। लेकिन इस देश में एक राजनीतिज्ञ ऐसा भी हुआ था जिसने अपनी पार्टी की कमजोर होती जड़ों को फिर से मजबूत करने के लिए न सिर्फ सत्ता को छोड़ा बल्कि आधी सदी पहले नि:स्वार्थ राजनीति के एक ऐसे उसूल को कायम किया।
कांग्रेस आलाकमान को अपने पूर्व के नेताओ का अनुश्रवण करना चाहिए , अगर उन्हें भुलाने का सिलसिला अगर बरक़रार रखा गया तो वो दिन दूर नहीं जब देश कि जनता कांग्रेस को ही भूल जाएगी।
15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरुधुनगर में जन्मे कामराज अपने पारिवारिक परिस्थिति के कारन शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए और महज 16 वर्ष कि आयु में ही कांग्रेस ज्वाइन कर लिए । जिसके बाद म्युनिस्पल का अध्यक्ष पद से सूबे का मुख्यमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक का सफर तय किया।
1954 में जब उन्हें तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनाया गया उस समय तमिलनाडु में शिक्षा व्यवस्था बहुत ही खस्ता हाल में थी। प्रदेश की साक्षरता दर सात फीसद हुआ करती थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद कामराज शिक्षा को बढ़ाबा विद्यालय में बच्चे का ड्राप - आउट कम कैसे हो उस के लिए बहुत सारी योजना लेके आये जिन योजनाओ को भारत / केंद्र सरकार को लाते - लाते 20वी शताब्दी हो गयी। कामराज के महत्वपूर्ण योजना में प्रत्येक गाँव में प्राथमिक विधालय , 11वीं तक अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा और मध्यान भोजन प्रमुख थे , कामराज के समय से ही तमिल में शिक्षा दी जाने लगी। जिसका परिणाम हुआ सात फीसदी साक्षारता दर वाले प्रदेश में बहुत काम समय में 37 फीसदी साक्षारता दर हो गया।
तीन बार सूबे का कमान सम्हाल चुके कामराज को 60 के दशक में संगठन कमजोर होती नज़र आयी जिसका जिक्र उन्होंने देश के प्रधानमंत्री और उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष पंडित नेहरू से की। कामराज ने नेहरू को एक प्लान बताया जिसे बाद में कामराज प्लान के नाम से जाना गया। जिसके तहत छः केंद्रीय मंत्री और छः मुख्यमंत्री को अपना पद छोड़ पार्टी / संगठन के मजबूती के लिए काम करना था। यही प्लान के वजह से कहा जाता है की इंदिरा गाँधी का रास्ता खुला।
1964 में नीलम संजीव रेड्डी के इस्तीफा के बाद कामराज को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। कामराज और उनके दक्षिण भारत से आने वाले कोंग्रेसी नेताओ को सिंडिकेट के नाम से भी जाना जाता था।
साल 1964 में नेहरू की मौत के बाद कांग्रेस पार्टी नेतृत्व के संकट से जूझ रही थी। ऐसे में बतौर कांग्रेस अध्यक्ष कामराज ने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर पहुंचाया। लालबहादुर शास्त्री की आकस्मिक मौत के बाद जब एक बार फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली हुई तब भी कामराज के पास उसे हासिल करने का अच्छा मौका था।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के डीक्लासिफाइड दस्तावेजों के मुताबिक उस वक्त सीआईए भी यह मान के चल रही थी कि कामराज ही अगले प्रधानमंत्री होंगे. लेकिन कामराज एक बार फिर से सत्ता से दूर ही रहे और उन्होंने इंदिरा गांधी को देश की तीसरी प्रधानमंत्री बनवा दिया।
जीवन भर महात्मा गांधी के सिखाए आदर्शवाद की राजनीति करने वाले के कामराज गांधी जयंती के ही दिन यानी दो अक्टूबर 1975 को इस दुनिया को छोड़ कर चले गए.
जनसेवा और साफ-सुथरी राजनीति के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले के कामराज को उनकी मौत के एक साल बाद 1976 में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
कांग्रेस आलाकमान को अपने पूर्व के नेताओ का अनुश्रवण करना चाहिए , अगर उन्हें भुलाने का सिलसिला अगर बरक़रार रखा गया तो वो दिन दूर नहीं जब देश कि जनता कांग्रेस को ही भूल जाएगी।
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