मेरा प्यार और राष्ट्रीय राजमार्ग - 2 - .

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Monday, December 25, 2017

मेरा प्यार और राष्ट्रीय राजमार्ग - 2

मेरा प्यार और राष्ट्रीय राजमार्ग - 1 से आगे पढ़े। 

रात का खाना खाने के बाद सभी सोने कि तैयारी में लग गए , मेरे सोने के लिए हॉल में बिस्तर लगाया गया था। बाहर बारिश हो रही थी, मै अपने बेड पर आ कर लेट गया, सफर के थकान के वजह से नींद के आगोश में जाने लगा , तब ही मेरे कानो में एक आवाज गूँजी, रात को ठण्ड लगेगी ये चादर लेलो , मै आँख खोल के देखा वो मेरे सामने खड़ी थी। उसके हाथ से चादर लिया और तपाक से अंग्रेजी के चंद लाइन गुड नाईट , स्वीट ड्रीम बोल दिया , उसने भी मेरे अंग्रेजी के लाइन का उतर दी और वहाँ से चली गयी , लेकिन दिल के बैचेनी और बढ़ गयी मन कर रहा था, पूरी रात उससे से बात करने का लेकिन मन को दबा के सो गया।

सुबह हो गयी थी घर के बड़े लोग उठ गए थे , मैं अभी भी सो रहा था।  तब ही मोना मेरे पास चाय लेके आई और मुझे जगाने लगी। मै उठकर चाय पिने लगा लेकिन नज़र किसी और को ढूंढ रही थी। तक तक वो भी हॉल में आ गयी , मैं देखते ही गुड मॉर्निंग बोला प्रतिउतर में उसने भी गुड मॉर्निंग बोली , उसने मजाक में बोली रात में दिक्कत नहीं हुयी न मैंने भी मजाक में बोला जहाँ आप हो वहाँ दिक्कत हो सकती है क्या अभी बात चल ही रही थी कि अंदर से अजय का आवाज आया जाने कि तैयारी करो। 

सभी जाने कि तैयारी करने लगे ,  अजय , विमल और मोना को दिल्ली निकलना था और हमें राँची, पटना से राँची जाने के लिए बस और ट्रैन प्रायः शाम में रहती है , लेकिन उनदिनों दिन में एक ट्रैन चलती थी।  मैं भी बुझे मन से तैयार होने लगा। हम को सभी बोलने लगे आप शाम को चले जाना , लेकिन मोना जा रही थी उस के बाद मेरा भी मन नहीं लगत सो मैं भी उन लोगो के साथ ही स्टेशन के लिए निकल गया। 

हम स्टेशन पहुंच मोना को उसके ट्रैन में बैठा दिया उसके बाद मैं भी टिकट लेके अपने ट्रैन का इंतज़ार करने लगा , मेरी ट्रैन आ गयी और हम बैठ कर अपने गंतव्य के तरफ निकल गए।  

अगली सुबह मैं रांची में था लेकिन मेरा मन मेरे साथ नहीं था , मैं अपना फ़ोन निकला और मोना को कॉल किया मोना भी पहली बार दिल्ली गयी थी, उसके लिए वहाँ सब कुछ नया था, हम अपनी यात्रा के और साथ बिताये पल को याद कर रहे थे।  मोना अगले मुलाकात के लिए हम पर दबाब बना रही थी और कही न कही मेरे मन में भी मिलने कि जिज्ञासा थी।

एक दिन सुबह - सुबह मोना का कॉल आया और हम से पूछी तुम गाँव चल रहे हो न , मेरा तब तक कोई प्लान नहीं था , मैंने तुरंत पूछा कब ? वो बोली हम लोग दुर्गापूजा में जा रहे है तुम भी आओ। मैंने दुर्गापूजा में व्रत का हवाला देते अपनी असमर्थता जताई , लेकिन वो कहाँ मानने वही थी , वो बोली हम कुछ नहीं सुनना चाहते है तुम गाँव आ रहे हो बस..... मैं अपना शस्त्र त्याग दिया और उसके हाँ - हां मिला दी, जिस के बाद उसने कहाँ ये हुई न स्मार्टी वाला बात। अब मैं भी जाने कि तैयारी करने लगा अपने ऑफिस से एक सप्ताह का छुट्टी भी ले लिया। 

पिछली बार मोना के गाँव कि यात्रा में एक लड़की मिली नेहा जो मोना के दूर के रिश्ते में बहन लगती थी , जिससे मोना ने मेरी दोस्ती फ़ोन पे करवाई थी, वो एक दोस्ती मात्र ही था मेरे तरफ से लेकिन वो लड़की उसको प्यार समझ बैठी। मोना भी एक दो बार उसके बारे में जानने की कोशिश कि लेकिन मैं सिर्फ दोस्त है बोल देता था , जिस पर मोना बोलती थी यार वो तो कुछ और ही समझ रही है मैं बोल देता जो समझना है समझने दो समय पर अक्ल ठिकाने लग जाएगी।

इस बार कि यात्रा से वो भी उत्साहित थी लेकिन मै सिर्फ मोना से मिलने के लिए जा रहा था। लेकिन , ये यात्रा मेरे जीवन को एक नया मोड़ देगा जिससे में पूरा अनजान अपनी गाँव कि यात्रा पर निकल गया। 


(c) दुर्गानाथ झा



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