मेरा प्यार और राष्ट्रीय राजमार्ग - .

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Saturday, January 30, 2016

मेरा प्यार और राष्ट्रीय राजमार्ग


आज भी याद है वो दिन , कैसे भूला दू ! उसे तो उस दिन भी याद नहीं था और आज भी याद नहीं वो दिन , कभी कभी वो जिद्द भी करती थी , बता दो बता दो , पर मै हर बार समय आने पर बताऊंगा बोल के टाल देता, पर ओ समय कभी न आया !

मेरा बचपन राष्ट्रीय राजमार्ग बहुत से ही दूर गुजरा , या कहे तो राष्ट्रीय राजमार्ग क्या होता है ये जानता भी नहीं था , समय के साथ - साथ हर असबाब बदला और जोश और जूनून अपने शबाब पर था , अब तक में अपने पैर पर लगभग खड़ा हो गया , जीवन का पहिया अपने गति से चल रही थी , मै अपने बाल काल से बाहर आ गया था !
भारतीय इतिहास में कभी न भूलने वाला दिन के एक दिन बाद मै और अपने से साथ 3 लोग (अजय, विमल , और मोना ) के साथ  सफर पर निकला मुझे भी पता नहीं ये सफर मेरे जीवन में इतने सारे बदलाओ लाने वाली है , बस अपने वेग से दौर पड़ी , सफर लम्बा था बस बीच में चाय नास्ते के लिए रुकी , भूख तो मुझे भी लगी मैने भी और मुसाफिर के तरह चाय नास्ता किया और चल पड़ा अपने गंतव्य के तरफ, बस पहुचने वाली थी मोना मेरे से बोली अपना बैग लेलो अब उतरना है , हाथ में बैग पकड़ बस से हम चार उतरे , हमलोगो के अगवानी में भी चार ही आये थे , हम को छोड़  सब एक दूसरे से परिचित थे , मै भी परिचय करना चाहता था मगर वो राष्ट्रीय राजमार्ग 77  था , मन में सोचने लगा चलो घर पे परिचय कर लेंगे, घर कि और चल दिए जो राष्ट्रीय राजमार्ग के बगल में ही था , एक बात तो मै बताना भूल ही गया घर के सभी लोग हमको देखने के लिए उत्सुक थे आखिर वो कौन है जिस को मोना बहुत प्यार - दुलार करती है ! तब  तक घर आ , सभी औपचारिकता पूरा करने के बाद हम सभी बैठक खाना में आ गए , सभी हम को पहचान गए थे, मोना हमको सब का परिचय दे रही थी , हम जिससे परिचय चाहते थे , उस से भी हो गया , मै अब उससे बात करने का बहाना खोजने लगा, बातो का दौर चला अब रात भी गहरी होने लगी  थी , रात का खाना खा सभी सोने के तैयारी में लग गए , मेरा नजर उस को ढूंढ रहा था , "Good Night " बोलने को शायद वो भी बोलना चाहती थी ,

भाग - १

(c) दुर्गानाथ झा

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