जीवन के किछ बितल नभ में बादल बनी किछ हमहुँ लिखतौ,
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
छल उम्र अबोधक कते निक उन्मुक्त मधुर मन नै किछु अभाव
बरखा जल में ओ कागत के बही रहल दूर धरी हमर नाऊ
चलिताई ओ नाऊ सरोवर जौ , किछु दूर फेर स हम बहिताओ !!
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
बरखा जल में ओ कागत के बही रहल दूर धरी हमर नाऊ
चलिताई ओ नाऊ सरोवर जौ , किछु दूर फेर स हम बहिताओ !!
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
छल कते निक गाछक झूला , उड़ी जाइत छलौ मोनक आकाश
अन्हार , बिहाइर् में दौर गेनौ नै भेल कतओ भय के अभास ,
रहितै ज गाछ कतओ ओहने हम फेर आई झूला झुलिताओ !!
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
अन्हार , बिहाइर् में दौर गेनौ नै भेल कतओ भय के अभास ,
रहितै ज गाछ कतओ ओहने हम फेर आई झूला झुलिताओ !!
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
छल कते निक तितली पाछा उठी दौअर लगाबी मस्त भेल
कंकर, पाथर, पथ नदी , धार नै रोकी सकल सब पस्त भेल
क दैयत समय ज मुक्त आई , हम फेर अपन बचपन देखताओ
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
कंकर, पाथर, पथ नदी , धार नै रोकी सकल सब पस्त भेल
क दैयत समय ज मुक्त आई , हम फेर अपन बचपन देखताओ
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
जीवन के किछ बितल नभ में बादल बनी किछ हमहुँ लिखतौ,
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
चानक इजोत में गोल गोल अपने अंगना हमहुँ नचिताओ !!
साभार : रजनी पल्लवी
No comments:
Post a Comment